1- क्रोध साक्षात् यमराज है ,तृष्णा वैतरणी नदी है , विधा कामनाओं को पूर्ण करने वाली
अर्थात विधा कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन इन्द्र की वाटिका के समान है |
सम्पूर्ण चाणक्य नीतियाँ(COMPLETE CHANAKYA NITI)
Friday 4 October 2013
चाणक्य जी ने बताया कि किससे बढ़कर क्या नहीं .
1- शांति के समान दूसरा कोई तप नहीं है ,सन्तोष से श्रेष्ठ सुख नहीं है ,तृष्णा से बढ़कर रोग नहीं है और दया
से बढ़कर धर्म नहीं है |
Tuesday 1 October 2013
चाणक्य जी ने बताया कि परमेश्वर कहां प्रकट होता है.
1- देव ,परमेश्वर लक्कड़ में नहीं है ,पत्थर में भी नहीं है ,मिट्टी की मूर्ति में भी नहीं है ,निश्यच ही परमेश्वर भाव में विधमान
है | इसलिए जहां भावना करें वहां ही परमेश्वर सिद्द होता है ,प्रकट होता है |
चाणक्य जी ने बताया कि सिद्दि कैसे प्राप्त की जा सकती है.
1- लक्कड ,पत्थर और लोहे आदि धातुओं की भावना और श्रद्दा से सेवा करके उस (भावना ) के द्धारा मनुष्य सिद्द हो जाता है , अथवा सिद्दि प्राप्त कर लेता है और भक्त पर परमेश्वर प्रसन्न होता है |
Sunday 29 September 2013
चाणक्य जी ने बताया कि किसके बिना क्या व्यर्थ है .
1- गुणहीन मनुष्य का रूप ,सुन्दरता मारी जाती है ,व्यर्थ समझी जाती है ,शीलहीन का कुल निन्दित होता है ,अलौकिक शक्ति से रहित ,बुद्दिहीन मनुष्य की विधा व्यर्थ
है और भोग के बिना धन व्यर्थ है |
चाणक्य जी ने बताया कि किसके सामान क्या है .
1- क्रोध साक्षात् यमराज है ,तृष्णा वैतरणी नदी है , विधा कामनाओं को पूर्ण करने वाली अर्थात विधा कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन
इन्द्र की वाटिका के समान है |
Friday 27 September 2013
चाणक्य जी ने बताया कि किससे बढ़कर क्या नहीं .
1- शांति के समान दूसरा कोई तप नहीं है ,सन्तोष से श्रेष्ठ सुख नहीं है ,तृष्णा से बढ़कर रोग नहीं है और दया
से बढ़कर धर्म नहीं है |
चाणक्य जी ने बताया कि परमेश्वर कहां प्रकट होता है.
1- देव ,परमेश्वर लक्कड़ में नहीं है ,पत्थर में भी नहीं है ,मिट्टी की मूर्ति में भी नहीं है ,निश्यच ही परमेश्वर भाव में विधमान
है | इसलिए जहां भावना करें वहां ही परमेश्वर सिद्द होता है ,प्रकट होता है |
Thursday 26 September 2013
चाणक्य जी ने बताया कि सिद्दि कैसे प्राप्त की जा सकती है.
1- लक्कड ,पत्थर और लोहे आदि धातुओं की भावना और श्रद्दा से सेवा करके उस (भावना ) के द्धारा मनुष्य सिद्द हो जाता है , अथवा सिद्दि प्राप्त कर लेता है और भक्त पर परमेश्वर प्रसन्न होता है |
चाणक्य जी ने बताया कि किसके बिना क्या व्यर्थ है .
1- अग्निहोत्र के बिना वेद का अध्ययन व्यर्थ है और दान-दक्षिणा के बिना यज्ञादि कर्म निष्फल है , भावना ,प्रेम ,भक्ति ,श्रद्दा के बिना सिद्दि , सफलता प्राप्त नहीं होती , इसलिए भाव = श्रद्दा-भक्ति ही सब सिद्दियों ,सफलताओं का मूल है |
2- गुण मनुष्य के रूप ,सौन्दर्य को शोभायान बना देता है ,शील कुल को अलंकृत कर देता है ,सिद्दि ,अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति ,मुक्ति ,बुद्दि विधा को भूषित करती है और भोग धन को सुभूषित बना देता है अर्थात भोग के
बिना धन व्यर्थ है |
Wednesday 25 September 2013
चाणक्य जी ने बताया कि ये तीन बातें पुरुषों की विडम्बना हैं.
1- वृद्दावस्था ,बुढ़ापे में मरी हुई पत्नी ,बन्धु-बान्धवों ,यार-दोस्तों के हाथ में गया हुआ धन और दूसरे के अधीन भोजन – ये तीन बातें पुरुषों की विडम्बना हैं, मृत्यु के समान दुःख देने वाली हैं |
चाणक्य जी ने बताया कि क्या किसके वगैर नष्ट हो जाता है .
1- आचरण से रहित ज्ञान व्यर्थ है और अज्ञान से मनुष्य मारा जाता है ,नष्ट हो जाता है ,नायक ,सेनापति से रहित सेना मारी जाती है ,स्वामीहीन ,पति से रहित नारियां भी नष्ट हो जाती हैं |
Monday 23 September 2013
चाणक्य जी ने बताया कि किस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था राष्ट्र के लिए आवश्यक है .
1-
आवाम अथवा परराष्ट्र सम्बन्धी कर्तव्य-मण्डल अर्थात पड़ोसी राष्ट्र से
सम्बन्ध रखता है |
भावार्थ- शत्रुओं के
कार्यों या उनकी गतिविधियों की देखभाल ,उन पर वरावर रखने वाला तन्त्र ही सफलता के
साथ राज्य बनाये रखता है |पड़ोसी राष्ट्रों की गतिविधियों पर नजर रखना आवश्यक
तन्त्र है |अपने राज्य की सुरक्षा व् सुद्रढ़ता के लिए शत्रुओं के कार्यों या उनकी
गतिविधियों पर नजर रखनी आवश्यक है |यह राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था के लिए अत्यन्त
आवश्यक होता है |
चाणक्य जी ने बताया कि राष्ट्र में अव्यवस्था कैसे फैलती है .
1-
राष्ट्र व्यवस्था तन्त्र कहलाती है |वह केवल स्वराष्ट्र विषयों के कर्तव्यों से सम्बन्धित रहती है |
Sunday 22 September 2013
चाणक्य जी ने बताया कि भोजन के अन्त में किसका सेवन विष के समान है.
1- अपच होने पर जल पीना ओषध है ,भोजन के पच जाने पर जल का सेवन बल देने वाला है और भोजन के मध्य में जल का
पीना अमृत के समान गुणकारी है परन्तु भोजन के अन्त में जल का सेवन विष के समान
हानिकारक होता है |
चाणक्य जी ने बताया कि मनुष्य कब तक चाण्डाल होता है .
1- तेल की मालिश करने पर ,चिता के धुएं का स्पर्श होने पर ,स्त्री के साथ सम्भोग करने के
पश्चात् मनुष्य जब तक स्नान नहीं कर लेता तब तक चाण्डाल होता है |
Saam Daam Dand Bhed : Chanakya Neeti.
* readers discretion
advised ***
There are four ways
for making someone to do a task, stated as “Saam, Daam, Dand &
Bhed”. This sutra by
Acharya Chanakya is used worldwide. why? It works and is highly practical. For
those who don’t know can refer to the list included in the section below:
·
Saam: to advice and ask
·
Daam: to offer and buy
·
Dand: to punish
·
Bhed: exploiting the secrets
The foremost thing
that must be accomplished is to tell the person about the task to be performed.
Upon rejection, your move will be to explain the validity of your point,
profit-involved and consequences.
Example: telling a kid about
the significance of good habit & nature.
If the person
understands, then that’s well and good else try Daam over
him/her. Money is not
everything but it can do miracles. This idea is quite similar to that of bribe.
The point to be noted here is that the concept of ‘Daam’ is just not related to monetary aspects. Its
far more than that i.e. its about utilizing all types of greed in that person.
Example: telling the kid that
he will get a chocolate for doing good deeds.
If even this fails
then comes the time to implement Dand witch refers to punishment and can be applied
to appropriate levels.
Example: Restricting that kid
from watching TV and playing video games.
Anyhow, it can also
fail in many scenarios. Now come the mighty ‘Bhed’. This is the stuff that works every time
without a single miss. The whole idea is about exploiting the secrets of
the targeted person. The various kinds of implementations will vary as per
the situation. I hope no more explanations is required regarding it.
It is a bit disappointing to
find people misusing the very concept of “Saam, Daam, Dand &
Bhed”. Better utilize it for a good
cause. It is not the weapon, but the intention of its handler that counts.
* The concept of
Chanakya neeti explained above must be understood in a broader sense.
* Always abide by the
law & order and be helpful to others.
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